Class 12th Hindi 5 VVI Long Question Answer 2025 | Bihar Board Class 12th Hindi Long Type Question
पहले कड़बक में कलंक, कांच और कंचन से क्या तात्पर्य है
उत्तर- अपनी कविताओं में कवि ने कलंक, काँच और कचन आदि शब्दों का प्रयोग किया है। इन शब्दों की कविता में अपनी अलग-अलग विशेषताएँ हैं। कवि ने इन शब्दों के माध्यम से अपने विचारों को अभिव्यक्ति देने का कार्य किया है।
जिस प्रकार काले धब्बे के कारण चन्द्रमा कलंकित हो गया फिर भी अपनी प्रभा से जग को आलोकित करने का काम किया। जिस प्रभा के आगे चन्द्रमा का काल धब्बा ओझल हो जाता है, ठीक उसी प्रकार गुणीजन की कीर्तियों के सामने उनके एकाघ दोष लोगों की नजरों से ओझल हो जाते हैं।
कंचन शब्द के प्रयोग करने के पीछे कवि की धारणा है कि जिस प्रकार शिव त्रिशुल द्वारा नष्ट किए जाने पर सुमेरू पर्वत सोने का हो गया ठीक उसी प्रकार सज्जनों के संगति से दुर्जन भी श्रेष्ठ मानव बन जाता है। संपर्क और संसर्ग में ही यह गुण निहित है लेकिन पात्रता भी अनिवार्य है। यहाँ भी कवि ने गुण-कर्म की विशेषता का वर्णन किया है।
काँच शब्द की सार्थकता भी कवि ने अपनी कविताओं में स्पष्ट करने की चेष्टा की है। बिना धारिया में (सोना गलाने के पात्र में कच्चा सोना गलाया जाता है, उसे धारिया कहते हैं) गलाए काँच (कच्चा सोना) असली स्वर्ण को प्राप्त नहीं कर सकता है ठीक उसी प्रकार संसार में किसी मानव को बिना संघर्ष, तपस्या और त्याग के श्रेष्ठता नहीं प्राप्त हो सकती है।
2. पठित पदों के आधार पर तुलसीदास के भक्ति का परिचय दें
उत्तर- प्रस्तुत पद्यांशों में कवि तुलसीदास अपनी दीनता तथा दरिद्रता से मुक्ति पाने की माँ सीता के माध्यम से प्रभु श्रीराम के चरणों में विनय से युक्त प्रार्थना प्रस्तुत करते हैं। वे स्वयं को प्रभु का दास कहते हैं। नाम लै भरै उदर द्वारा स्पष्ट हो जाता है कि श्रीराम का नाम जप ही उनके लिए सबकुछ है। नाम-जप द्वारा उनकी लौकिक भूख भी मिट जाती है। संत तुलसीदास अपने को अनाथ कहते हुए कहते हैं कि मेरी व्यथा गरीबी की चिंता श्रीराम के सिवा दूसरा कौन बूझेगा? श्रीराम ही एकमात्र कृपालु हैं जो मेरी बिगड़ी बात बनाएँगे। माँ सीता से तुलसीदासजी प्रार्थना करते हैं कि हे माँ आप मुझे अपने वचन द्वारा सहायता कीजिए यानी आशीर्वाद
दीजिए कि मैं भवसागर पार करानेवाले श्रीराम का गुणगान सदैव करता रहूँ। दूसरे पद्यांश में कवि अत्यंत ही भावुक होकर प्रभु से विनती करता है कि हे प्रभु आपके सिवा मेरा दूसरा कौन है जो मेरी सुधि लेगा। मैं तो जनम जनम से आपकी भक्ति का भूखा हूँ। मैं तो दीन-हीन दरिद्र हूँ। मेरी दयनीय अवस्था पर करुणा कीजिए ताकि आपकी भक्ति में सदैव तल्लीन रह सकूँ।
3. प्यार का इशारा और क्रोध का दुधारा से क्या तात्पर्य है
उत्तर- गंगा, इरावती, नील, आमेजन आदि नदियाँ अपने अन्तर में समेटे हुए अपार जलराशि निरन्तर प्रवाहित कर रही हैं। उनमें वेग है, शक्ति है तथा अपनी जीवन धारा के प्रति एक बेचैनी है। प्यार भी है, क्रोध भी है। प्यार एवं आक्रोश का अपूर्व संगम है। उनमें एक करूणाभरी ममता है जो अत्याचार, शोषण एवं पाशविकता के विरूद्ध दोधारी आक्रमकता भी है। प्यार का इशारा तथा क्रोध की दुधारू का तात्पर्य यही है।
4. संघर्ष समितियां से जयप्रकाश नारायण के क्या अपेक्षाएं हैं
उत्तर- असंगठित जनता को संगठित करने हेतु एवं जनप्रतिनिधियों पर अंकुश लगाने हेतु जेपी जनसंघर्ष समितियों का निर्माण चाहते थे। जेपी चाहते थे कि जनसंघर्ष समितियाँ ही विधान सभा के लिए उम्मीदवारों का चयन करें।
जेपी यह भी चाहते थे कि संघर्ष समितियाँ केवल शासन से ही संघर्ष नहीं करे बल्कि उनको काम तो समाज के हर अन्याय और अनीति के विरुद्ध संघर्ष करने का होगा। बड़े किसानों की बेनामी सम्पत्तियों का विरोध भी जनसंघर्ष समिति करेगी। गाँव में तरह-तरह के अन्याय होते हैं। ये समितियाँ उन अन्यायों का भी दमन करेंगी। यह केवल लोकतंत्र के लिए ही नहीं, बल्कि सामाजिक, आर्थिक एवं नैतिक क्रांति के लिए अथवा सम्पूर्ण क्रांति के लिए एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण कार्य करेंगी। ये संघर्ष समितियाँ निर्दलीय होंगी।
5. चंपारण में शिक्षा की व्यवस्था के लिए गांधी जी ने क्या किया ?
उतर- गाँधी जी ने तीन गाँवों में आश्रम, विद्यालय स्थापित किए। बड़हरवा, मधुवन और भितिहरवा। इन तीन गाँवों में उक्त तीनों विद्यालय थे। उनके संचालन के लिए कार्यकर्त्ता गुजरात और महाराष्ट्र से आए। बड़हरवा के विद्यालय का संचालन विदेश में शिक्षा प्राप्त बबन श्री गोखले तथा उनकी विदुषी पत्नी अवन्तिका बाई गोखले को सौंपा। देवदास गाँधी भी उनके साथ थे। मधुवन में गाँधी जी ने गुजरात के नरहरि दास पारिख, उनकी पत्नी तथा अपने सेक्रेटरी महादेव देसाई को भेजा। आचार्य कृपलानी भी कुछ दिन वहाँ रह। भितिहरवा क अध्यक्ष वयोवृद्ध डॉक्टर देव थे और वहाँ उनके सहयोगी सोमन जी थे। भितिहरवा आश्रम में कस्तूरबा भी रही। बाद में वहाँ पुडलीक जी गए। इस प्रकार चंपारण के लोगों में शिक्षा का प्रसार करने के लिए महात्मा गाँधी ने महान कार्य किए।
6. शिक्षा का अर्थ क्या है इसके कार्य एवं उपयोगिता का वर्णन करें
उत्तर- मानव जीवन के सर्वांगीण विकास का अर्थ शिक्षा है। इसमें मनुष्य की साक्षरता, बुद्धिमत्ता, जीवन-कौशल व अन्य सभी समाजोपयोगी गुण पाये जाते हैं। शिक्षा के अन्तर्गत विद्यार्थी का विद्यालय जाना, विविध विषयों की पढ़ाई करना, परीक्षाएँ उतीर्ण होना, जीवन में ऊँचा स्थान प्राप्त करना, दूसरों से स्पर्धा करना, संघर्ष करना एवं जीवन के सर्व पहलुओं का समुचित अध्ययन करना-ये सारी चीजें शिक्षा के अन्तर्गत आती हैं। साथ ही जीवन को ही समझना शिक्षा है।
शिक्षा के कार्य शिक्षा के कार्य केवल मात्र कुछ नौकरियों और व्यवसाय के योग्य बनाना ही नहीं है बल्कि संपूर्ण जीवन की प्रक्रिया वाल्यकाल से ही समझाने में सहयोग करना है एवं स्वतंत्रतापूर्ण परिवेश हेतु प्रेरित करना भी।
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